पहले तो आप सभी को गणेश चतुर्थी की हार्दिक शुभकामनाएँ|
आज से जगह–जगह गणेश जी के पंडाल लगेंगे साथ ही रोज़ मोती चूर
के लड्डू मिलेंगे और खूब सारी मस्ती होगी और कुछ न कुछ कहीं न कहीं मनोरंजन भरे रंगा रंग कार्यक्रम
भी होंगे | मुझे याद बचपन मे जब छोटा था (वैसे बचपन मे सब छोटे ही होते है हा हा हा
... :D) तब हम बड़े धूम धाम से गणेश जी की मूर्ति को नगाड़ो के
साथ नाचते गाते हुए लाते थे, फिर पंडित जी के पास बार-बार प्रसाद
लेने जाते थे कई बार तो पंडित जी डाट भी देते थे पर क्या करे छोटे थे आदत से मजबूर
जिस चीज़ के लिए माना करो उसको फिर से करने का मजा ही अलग होता है|
पर अब जब से दिल्ली आया हूँ तब से न तो वो दीवानपन दिखता है
न ही वैसी भक्ति, हा ये जरूर दिखा है की जहा भी पंडाल लगाए गए है वहा हनी सिंह के
गाने और रिमिक्स गाने बजते जरूर दिख जायेंगे यहा तो बस लोगो में दिखावा देखा था पर अब यहाँ
तो भक्ति मे भी दिखावा है| किसी ने सच ही कहा है “हम भगवान
को चाहते नहीं भगवान से डरते है” |
ख़ैर जो भी हो मेरी बात आपको चुभ भी सकती है इसलिए ज्यादा नहीं
लिखुंगा पर एक बात जरूर लिखना चाहूँगा जो बुरी लगेगी और लगनी भी चाहिए आखिर इतने भगवान
बनाएँ ही क्यों आखिर किसके भक्त बने न बने इनके बने तो वो बुरा मान जायेंगे उनके नहीं
तो तो वो बुरा मान जायेंगे, आज की ही बात है मैं जब मंदिर गया तो अजीब सा
माहौल दिखा जिस मंदिर में गया वहा सब देवी देवता मौजूद थे पर जिनको हम सर्व प्रथम मानते
है (ऐसा मेरा मानना है) गणेश जी की मूर्ति को अलग से स्थापना की गयी और उनकी कोई मूर्ति
मौजूद नहीं यानि की वो सिर्फ गणेश चतुर्थी के वक्त अपने दर्शन देने आते है।
वैसे पंडित
जी भी बड़े गज़ब निकले टीका लगा कर कहते अपनी इच्छा अनुसार जो भी दान करना हो कर सकते
हो, सही है भी है आखिर मंडी का दौर जो है जबसे PK आयी है कम से कम हम जैसे नौजवान टोआ समझदार तो हो ही गए है (और मैं दान-पेटी
को दया के भाव से देखने लगा)।
बोलो गणपति बाप्पा मोरेया....!
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