दिल्ली की कड़कड़ाती ठंड में चुनावी सरगर्मी जिस
तरह परवान चढ़ चुकी हैं ।
पिछले वर्ष की तरह इस बार भी राजनितीक पार्टीयां चुनाव जीतने के
लिए अपने-अपने कमर कस चुकी है, इससे तो यही लग रहा है कि इस चुनावी समर में कुछ तो
नया होगा । चाहे कांग्रेस,भाजपा या आम आदमी पार्टी सभी अपने-अपने मुद्दे पर चुनाव
जीतने का दावा पेश कर रही है। वैसे तो दिल्ली का चुनावी माहौल से यही लगता है कि
मुख्य मुकाबला भाजपा और आम आदमी पार्टी के बीच है, कांग्रेस कहीं किनारे
खड़ी नजर आ रही है।
आम आदमी पार्टी पिछले वर्ष कि तरह इस बार भी आरोप प्रत्यारोप पर खेल रही है, कहीं न कहीं वो अपने “जनलोकपाल बिल” मुद्दे से भटक गई है जिसके सहारे उन्होंने दिल्ली का तख्त हासिल किया था । भाजपा भी विवादित बयानो के चलते संभलकर खेलना चाह रही हैं ।
आम आदमी पार्टी पिछले वर्ष कि तरह इस बार भी आरोप प्रत्यारोप पर खेल रही है, कहीं न कहीं वो अपने “जनलोकपाल बिल” मुद्दे से भटक गई है जिसके सहारे उन्होंने दिल्ली का तख्त हासिल किया था । भाजपा भी विवादित बयानो के चलते संभलकर खेलना चाह रही हैं ।
अन्य राज्यों की तरह दिल्ली को भी मोदी के सहारे
फतह करना चाह रही हैं। दिल्ली विधानसभा चुनाव में भाजपा ने अब तक कोई उम्मीदवार घोषित
नहीं किया है बल्कि पिछले चुनाव में हर्षवर्धन जैसा ईमानदार लेकिन इस बार ऐसा कोई
चेहरा नजर नहीं आ रहा । आखिर कब तक मोदी के चेहरे पर भाजपा दाव लगाती रहेगी ?
पिछली बार आम आदमी पार्टी के पास 28 सींटे जीतकर
सरकार बनाई थी लेकिन भाजपा 32 सींटे जीतकर भी सरकार नहीं बना पाई थी वैसे “आप” कि सरकार भी 49 दिन
सें ज्यादा सत्ता पर काबिज नहीं रह सकी , इसके कारण चाहे जो भी रहें हो पर इस बार
जनता यही चाहती है कि चाहे सरकार जिसकी भी बने पुर्ण बहुमत की बने ।
- देवेन्द्र गोरे / प्रवीण सिंह
- देवेन्द्र गोरे / प्रवीण सिंह
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