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“उठकर करने है कुछ काम
रघुपति राघव राजा राम”
राजनीति पर आधारित फिल्म बनाने वाले प्रकाश झा जनता को आकर्षित करने मे सफल तो हुए है पर फिल्म मे “गंगाजल” “राजनीति” जैसी पकड़ नहीं दिखी| इसमे कोई दो राय नहीं की यह फिल्म अन्ना हजारे के भ्रष्टाचार के आंदोलन पर आधारित है और दर्शको को वही दिखा कर आकर्षित किया है |
लेकिन फिल्म को देखने के बाद कहीं ना कहीं ऐसा महसूस हुआ कि फिल्म को बनाते समय अन्ना हजारे मूवमेंट कहीं ना कहीं फिल्म निर्माताओं की सोच मे था लेकिन बाद में फिल्म बनाते हुए उन्होंने ये सोचकर कि कहीं कुछ ज्यादा बवाल ना हो जाए फिल्म में काफी बदलाव करने की कोशिश की। लेकिन फिर भी अरविंद केजरीवाल और साथ ही अन्ना की मौजूदगी कहीं ना कहीं हीं जरुर महसूस हो रही थी। जहां तक बात है फिल्म के सफल होने की तो सत्याग्रह कहीं ना कहीं थोड़ी बोर जरुर लगी है और फिल्म कुछ भी ऐसा नहीं है जो कि यंग जेनरेशन के खून को खौला देगा या उनमें बदलाव की चिंगारी पैदा कर देगा। फिल्म मे social नेटवर्किंग का इस्तेमाल काफी अच्छी तरह से किया गया है जो आज की युवा पीड़ी मे काफी प्रसिद्ध है |
फिल्म का संगीत साधारण है. बस एक गीत रघुपति राघव राजा राम फिल्म के अंदर अच्छा लगता है|
फिल्म की कहानी भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई से जुड़ी हुई है। रिटायर अध्यापक द्वारका आनंद (अमिताभ बच्चन) ऐसे व्यक्ति हैं जो देश को भ्रष्टाचार से मुक्त कराना चाहते है। वह अपने सिद्धांतों पर चलते है। मानव राघवेंद्र (अजय देवगन) दिल्ली में अपना व्यापार चलाता है और इसके लिए कुछ भी कर सकता है। मंत्री बलराम सिंह (मनोज वाजपेयी) सत्ता और सत्ता हथियाना चाहता है। राजवंशी सिंह (अर्जुन रामपाल) सड़कों की राजनीति करने में व्यस्त हैं। यास्मीन (करीना कपूर) एक खोजी पत्रकार का जिसका मकसद लोगों तक सच पहुंचाना है। एक दिन अचानक एक दुर्घटना में द्वारका के बेटे अखिलेश की मौत हो जाती है। मंत्री बलराम अखिलेश की पत्नी अमृता सिंह को मुआवजा देने की घोषणा करता है लेकिन जब उसे अखिलेश की मौत के 3 माह बाद भी मुआवजा नहीं मिलता है तो वह कलेक्टर ऑफिस पहुंचती है। यहीं से शुरू होती है भ्रष्टाचार के खिलाफ जंग। इस फिल्म से प्रकाश झा ने राजनीति और गंगाजल बनाई जो बॉक्स ऑफिस पर हिट रही।
पर मुझे लगता है सत्याग्रह देखने के बाद की “सत्याग्रह कल भी जरूरी था और आज भी जरूरी है” !
देवेंद्र गोरे
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